गुरुवार, 27 अगस्त 2009

केंद्र सरकार समय पर बिजली प्रोजेक्ट पूरा नहीं करने वाली निजी बिजली कंपनियों पर नकेल कसने के लिए इलेक्ट्रिसिटी एक्ट 2003 में संशोधन करने जा रही है। इस संशोधन के मसौदे (ड्राफ्ट) के मुताबिक अगर कंपनी ने समय पर (लगभग तीन साल) प्रोजेक्ट पूरा नहीं किया तो पांच करोड़ रुपये के जुर्माने के साथ-साथ उसका प्रोजेक्ट भी केंद्र सरकार वापस ले सकती है।
ऊर्जा मंत्रालय के एक बड़े अधिकारी के मुताबिक बिजली प्रोजेक्ट समय पर पूरे हों, इसके लिए इस कानून में संशोधन कर प्रोजेक्ट लेने वाली कंपनी को इसे समय पर पूरा नहीं करने पर बड़ा जुर्माना और प्रोजेक्ट वापस तक लेने का प्रावधान करने की तैयारी की जा रही है। उन्होंने बताया कि इलेक्ट्रिसिटी एक्ट 2003 के सेक्शन 63 के मुताबिक निजी बिजली कंपनियों को बिजली उत्पादन और वितरण में उतरने के लिए लाइसेंस लेने की जरूरत होती है। निजी कंपनी को किसी प्रोजेक्ट की मंजूरी के लिए खुद काम करना होता है, लेकिन स्रोत वह सरकार से ही लेती है। यही कारण है कि प्रोजेक्ट समय पर पूरा करने के लिए उनको भी इस कानून के दायरे में लाया जा रहा है।
लेकिन इस संशोधन का सबसे ज्यादा असर अल्ट्रा मेगा पावर प्रोजेक्ट हासिल कर चुकी कंपनियों पर होगा। अल्ट्रा मेगा पावर प्रोजेक्ट में केंद्र सरकार कंपनियों को कोल ब्लॉक, पर्यावरण मंजूरी और वित्तीय मदद तक मुहैया करा रही है। इसलिए इन प्रोजेक्ट के समय पर पूरा करने के लिए मंत्रालय ज्यादा जोर दे रहा है। फिलहाल इसका ड्राफ्ट तैयार हो रहा है जिसके मुताबिक अगर किसी कंपनी ने अपनी तय समय सीमा में प्रोजेक्ट पूरा नहीं करती तो उस पर पांच करोड़ रुपये का जुर्माना और प्रोजेक्ट वापस भी लेने का प्रावधान शामिल किया जा रहा है।
इसके लिए इलेक्ट्रिसिटी एक्ट में कुछ नए सेक्शन जोड़े जा रहे हैं। अभी रिलायंस पावर के पास तीन अल्ट्रा मेगा पावर प्रोजेक्ट सासन, कृष्णापट्टनम और तिलैया हैं। जबकि टाटा पावर को मुंदरा प्रोजेक्ट मिला है। वैसे तो रिलायंस पावर को तीन प्रोजेक्ट देने के खिलाफ भी मंत्रियों के समूह में बातचीत हुई थी, लेकिन इस पर कोई फैसला नहीं हुआ था। अब इस संशोधन से कंपनी पर समय पर प्रोजेक्ट पूरा करने का दबाव भी बन जाएगा। इन सभी प्रोजेक्टों को 12वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान पूरा होना है।

गुरुवार, 19 मार्च 2009

इंडिया की economy पॉलिसी

पिछले साल upe सरकार ने जीडीपी की तेजे रफ्तार को रोकने के लिए मुद्रास्फीति

बिजली की बिक्री पर मंत्रालय और सीईआरसी आमने-सामने

बिजली को खुले बाजार में बेचने के खिलाफ ऊर्जा मंत्रालय और केंद्रीय विद्युत नियामक आयोग (सीईआरसी) अब आमने-सामने आ गए हैं। दरअसल, ऊर्जा मंत्रालय यह नहीं चाहता है कि जितनी बिजली भी अतिरिक्त होती है वह सारी की सारी खुले बाजार में बेची जाए। वहीं, दूसरी ओर सीईआरसी इसका समर्थन कर रहा है। ऊर्जा मंत्रालय की मर्जी के खिलाफ सीईआरसी ने बुधवार को राज्यों की एक बैठक बुलाई है जिसमें इसको लागू करने में आने वाली परेशानियों पर चर्चा की जाएगी। सीईआरसी के सूत्रों के मुताबिक अगर बिजली को खुले बाजार में बेचा जाएगा तो इससे बिजली उत्पादन के लिए कंपनियां तो आगे आएंगी ही, साथ ही राज्यों को भी जरूरत के हिसाब से बिजली मिलेगी। हालांकि, इसको लागू करने की स्थिति में ऊर्जा मंत्रालय के हाथ से केंद्रीय संस्थानों के कुल बिजली उत्पादन में से 15 फीसदी बिजली को अपने हिसाब से राज्यों को देने का अधिकार निकल जाएगा। इसलिए ऊर्जा मंत्रालय इसका विरोध कर रहा है। फिलहाल केंद्रीय संस्थान करीब 50,000 मेगावाट बिजली का उत्पादन करते हैं और केंद्र सरकार के हाथ में 7,500 मेगावाट बिजली होती है जिसे ऊर्जा मंत्रालय अपने हिसाब से राज्यों को देने का निर्देश दे सकता है। सीईआरसी के एक अन्य अधिकारी के मुताबिक बुधवार को राज्यों के प्रतिनिधियों के साथ होने वाली बैठक में खुले बाजार में बिजली बिकने से होने वाले फायदे और इसको लागू करने में आने वाली दिक्कतों के बारे में बताया जाएगा। हालांकि, इस बारे में ऊर्जा मंत्रालय खुश नहीं है। इससे पहले इस मुद्दे पर कई बार ऊर्जा मंत्रालय और सीईआरसी की बैठकें हो चुकी हैं। यह प्रस्ताव योजना आयोग का था। इस प्रस्ताव से देश में बिजली एक्सचेंज को बढ़ावा भी मिलेगा। इसलिए मंत्रालय के नाखुशी के बावजूद सीईआरसी इस पर आगे बढ़ रहा है। राज्यों को देने का निर्देश दे सकता है। सीईआरसी के एक अन्य अधिकारी के मुताबिक बुधवार को राज्यों के प्रतिनिधियों के साथ होने वाली बैठक में खुले बाजार में बिजली बिकने से होने वाले फायदे और इसको लागू करने में आने वाली दिक्कतों के बारे में बताया जाएगा। हालांकि, इस बारे में ऊर्जा मंत्रालय खुश नहीं है। इससे पहले इस मुद्दे पर कई बार ऊर्जा मंत्रालय और सीईआरसी की बैठकें हो चुकी हैं। यह प्रस्ताव योजना आयोग का था। इस प्रस्ताव से देश में बिजली एक्सचेंज को बढ़ावा भी मिलेगा। इसलिए मंत्रालय के नाखुशी के बावजूद सीईआरसी इस पर आगे बढ़ रहा है। सीईआरसी के सूत्रों के मुताबिक जिन राज्यों में बिजली की कमी है उनको खुले बाजार में बिजली बेचने का काफी फायदा मिलेगा। कारण यह है कि अगर केंद्र सरकार के हाथ में 15 फीसदी बिजली अपने हिसाब से राज्य को देने का अधिकार रहता है तो कई बार राज्य की मांग के बावजूद मंत्रालय अपने राजनीतिक गणित के हिसाब से बिजली का वितरण करता है। लेकिन जब खुले बाजार में सारी बिजली बिकने के लिए आ जाएगी तो यह बिजली बाजार की मांग और सप्लाई के हिसाब से मिलेगी। फिलहाल मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, पंजाब, हरियाणा और दिल्ली जैसे राज्यों में बिजली की कमी है जिसे पूरा करने के लिए ये राज्य उत्तरी और पश्चिमी ग्रिड से बिजली लेते हैं। उधर, हिमाचल और उत्तर-पूर्व राज्यों के पास अतिरिक्त बिजली है। लेकिन खुले बाजार में बिजली की बिक्री शुरू होने के बाद पूरे भारत से कहीं भी बिजली खरीदी-बेची जा सकेगी जिससे बिजली की उपलब्धता बढ़ेगी।

पंजाब नेशनल बैंक खोलेगा एक टच point

आर्थिक संकट के माहौल में भी सरकारी बैंक अपनी विस्तार योजनाओं को अमली जामा पहनाने में लगे हैं। देश के दूसरे सबसे बड़े सरकारी बैंक पंजाब नेशनल बैंक (पीएनबी) अगले चार सालों में अपने नेटवर्क को गांव के स्तर पर ले जाने के लिए करीब 400 करोड़ रुपये के निवेश की महत्वाकांक्षी योजना तैयार की है। इसके तहत बैंक 1,00,000 टच प्वाइंट खोलेगा। इस बारे में बैंक के सीएमडी के. सी. चक्रबर्ती ने बिजनेस भास्कर को बताया कि टच प्वाइंट बैंक के नेटवर्क को बढ़ाने में मदद करेंगे। अभी बैंक की 4,000 से ज्यादा शाखाएं हैं। अब बैंक ग्रामीण इलाकों और ऐसे जिलों में अपनी उपस्थिति बढ़ाना चाहता है जहां इसकी पहुंच नहीं है। इन एक लाख टच प्वाइंट में बैंक 2013 तक करीब 400 करोड़ रुपये का निवेश करेगा। बैंक के एक अन्य अधिकारी ने इस बारे में बताया कि टच प्वाइंट में बैंक की शाखाएं बढ़ाने के साथ ग्रामीण इलाकों में पीएनबी कियॉस्क खोलना, एटीएम मशीन लगाना, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की शाखाएं बढ़ाना, मोबाइल वैन शुरू करना और बायोमैट्रिक्स मशीन लगाना आदि शामिल है। बैंक की योजना मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़़, उत्तरांचल, उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, हिमाचल और बिहार में टच प्वाइंट शुरू करना है। दरअसल, बैंक की शाखाएं ज्यादातर उन इलाकों में हैं जहां कारोबार ज्यादा है। चूंकि शाखाएं खोलने में बैंक का निवेश भी ज्यादा होता है और वहां कामकाज चलाए रखने में भी लागत ज्यादा आती है। इसलिए अभी तक ज्यादातर बैंक छोटे स्थानों पर शाखाएं नहीं खोलते।